पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं
पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं
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उनकी यादों में मैंने
दिन रात खोया है
कहां-कहां नहीं मैंने
खुद को भटकाया है।
सहेज कर यादे उनकी
पत्र में समेट दिया
खोए खोए लम्हों में
क्या क्या उन्हें भेंट दिया।
प्यार था उन्हें कितना
क्या वह रेट दिया
हालात देख वह मुझे
सीधे-सीधे नैगलेट किया।
दावा था जिनका
दूर-दूर जाने को
सपनों को सच में
साकार कर दिखाने को।
वह क्षण भर में आकर
हमसे ऐसे टूट गया
जाने कभी मिला नहीं
ऐसे मुझसे छूट गया,
ऐसे मुझसे छूट गया।