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Randheer Rahbar

Tragedy

2  

Randheer Rahbar

Tragedy

" पति का बटुआ "

" पति का बटुआ "

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बंधन हमारा जब हुआ ,

थी तेरी मैं प्राणप्रिया

अंग - अंग प्रणय हुआ ,

मन ने फिर मन को छुआ I


वो आसमानी सात रंग ,

छाई मन में जैसे उमंग I

कह रहे खुशिंयों के रंग

हाथों से हाथ का मिलन 

धरा ने जैसे आसमां छुआ I


गए हम फिर एक दिन बाज़ार I

मन हुआ कि दूँ मैं भी

कुछ उन्हें उपहार ,

गुलाबी रंग का उन्हें इक बटुआ दिया,

झट से उन्होंने

मेरा फोटो बटुए में लगा लिया I


आज वो सुनहरी रात थी,

हम दोनों में बात थी ,

और फिर आंचल उड़े,

दो बदन फिर जुड़े ,

आँखों में चलता जुआ,

जाने कब भानु ,

खिड़की पर आ खड़ा हुआ I


फ़ोन की घंटी बजी,

रह गई थाली यूँ ही सजी I

उधर से आवाज में

जो भरी टंकार थी,

बॉर्डर पर वापसी की वो पुकार थी I


मैं न हुई यूँ अधीर थी,

संगिनी मैं सैनिक की जो वीर थी ,

खुद को किया तब एक - सा,

वो देख मुझे, दे रहे थे टेक - सा I

 

वो बोले कड़क आवाज में,

आवाज है ये देश की I

लौट कर आया न अगर ,

आस तो रखना भेंट में

मेरे सन्देश की I


बटुआ निकाला जेब से,

देखा मेरी तस्वीर को 

फिर कुछ यूँही सोच कर

मुझे वो देखता गया I


आरती की थाल लिए,

भार्या मैं शूरवीर की ,

तिलक लगा ललाट पर,

और यूँ विदा किया I


समय सा कुछ ठहर गया,

सुबह गई, दोपहर गया

वो रात फिर कहने लगी,

सैनिक का हो मान तुम

इसी में ये पहर गया I 


और फिर आई खबर,

वीरता के सिपाही,

यूँ रहे ललकार थे

देखते थे जिधर,

दहकते अंगार थे I


कुछ गिर पड़े धरा पर,

और कुछ लड़ते रहे

दुश्मनो की छाती चीर

शौर्य गाथा गढ़ते रहे I


कुछ उगलते गोलों के बवंडर ,

कुछ हुए माटी - धूल थे I

शौर्य की गाथा यही,

लड़े जो शहीद,

 वो वीर थे I


आई खबर मेरे भी घर ,

अब सिंदूर था मेरा बलिदान का

कैसे सम्भालूं , किसे सम्भालूं ,

वो मेरा अभिमान था I


इस दफा चुपके से आये,

तिरंगा बदन पर ओढ़ कर

पास में रखी घडी ,

और वो बटुआ निशानी सिकोड़ कर I


रक्तरंजित और छलनी,

वो बटुआ गुलाबी बोलता

कैसे लड़े वो वीर योद्धा,

राज़ सारे खोलता I


कांपते हाथों से बटुआ जो खोला,

फोटो मेरी और वो आखरी ख़त उनका,

मन मेरा यूँ डोलता I  


आखरी सन्देश उनका,

मेरे आंसुओं को पोंछता I

मेरी बेटी और बेटे से कहना,

तैयार हों छाती को ताने,

जब - जब ये देश तुम्हें रहा पुकारता I


बस यही कहना मुझे ,

अब आखरी है अलविदा I

फौजी "पति का बटुआ "

इसमें है सिर्फ दुब , वो फूल

और देश की माटी की धुल    

सिक्कों में न तोलो इसे तुम,

बस इतना ही बोलता I


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