पता है ना तुम्हें
पता है ना तुम्हें


पता है ना तुम्हें
हाँ शायद पता होगा,
मैं स्त्री समर्पिता हूँ,
तभी तो हंसती हूँ,
संग तुम्हारे मुस्कराती हूँ।
जब भी तुम पर कोई,
आती हैं कठिनाइयां,
कमजोर हो जाती हूँ।
पर अपनी इच्छा शक्ति को,
मजबूत बनाने का प्रयास करती हूँ
ईश्वर के समक्ष उपस्थित हो,
बस दुआ सलामती मांगती हूँ।
आँखों से ऑंसू बहते हैं तब मेरे,
हाँ बेशक चुपके से बहा लेती हूँ।
जिदंगी कितने इम्तिहान लेगी मेरे,
हाँ यह सोच निराश हो जाती हूँ।
पर मन के संकल्पों संकट की बेला में,
सहेजने का भरसक प्रयत्न करती हूँ।