पसंदीदा भोजन
पसंदीदा भोजन
उम्र के इस पड़ाव में
अब क्या पसंद / नापसंद
अब तो जो बनता है
पति या बच्चों की पसंद पर।
धन्यवाद स्टोरी मिरर
ये विषय देकर
पहुँचा दिया माँ के आँगन
इतने सालों बाद
जब बालों में चाँदी चमक आई है
मैं बात कर रही हूँ
अपने पसंद के खाने की।
माँ के हाथ की बनी खिचड़ी
साथ में दही व प्याज
बाद में मीठी रोटी की चूरी
जब भी बनती मन से खाती
मम्मी के लिए शायद आसान रहा होगा
पर मुझे बहुत भाती।
शादी के बाद पति-पत्नी के टेस्ट में खिचड़ी
सोचती हूँ तो हँसी आती है
वो सूखी पुलाव वाली खाते,
मैं मरीजों वाली...
कुछ दिनों बाद खिचड़ी चैप्टर क्लोज।
सुनिए अब किस्सा खिचड़ी का
हस्बैंड मुंबई में, मैं चंडीगढ़ बेटे के साथ
मुंबई की यात्रा पश्चिम एक्सप्रेस ट्रेन
रास्ते में पड़ता कुरुक्षेत्र, माँ का घर।
मुश्किल ये कि ट्रेन रूकती कुछ मिनट बस
मम्मी ने कहा खाना भैया दे देगा स्टेशन पर
मैंने खिचड़ी तो नहीं पर मीठी चूरी की कर दी फरमाइश
खुद माँ बन चुकी थी पर उस दिन पता नहीं कैसे...
यात्रा के दिन सुबह से ही मन में खिचड़ी घूमे
वैसे भी जब मायके जाना माँ खिचड़ी जरूर बना रखती थी
जैसे ही ट्रेन कुरूक्षेत्र रूकी मैं पहले से ही दरवाजे पर पहुँच गई
पता था 2 मिनट का स्टोप है।
पर रूकने से पहले ही चढ़ने वालों की भीड़ घुसने लगी
मैं लोगों के धक्कों से अंदर होने लगी
न देख पाऊँ भैया कहाँ
न सोच पाऊँ कैसे क्या करूँ
ट्रेन कब रूकी कब चल पड़ी
पता न चला
भीड़ के कारण न मिल सकी।
मायूस मन अंदर आ गई
बेटे को हँसता देख हैरान हो गई
हाथ की चाकलेट दिखा बोला
माँ, माँ मामू ने दी
जल्दी से पूछा कैसे ?
बोला खिड़की से।
अनमनी सी बैठ गई खिड़की के पास
मीठी चूरी की याद दिला रही अहसास
अच्छा होता खुद लाती तो न होता ये हाल
तभी एक आवाज आई
मयंक कौन है भाई?
हैरानी से गर्दन घुमाई
तो एक लड़के को देखा भाई
हाथ टिफिन देख पहचान गई
माँ की खुशबु मुझ तक पहुँच गई।
लड़का बोला-भीड के कारण आपका भाई न पकड़ा पाया
शायद उसने आपके बेटे को देखा
मुझे देख कर देने को बोला
जल्दी में केवल मयंक सुन पाया
इसी लिए इस नाम से बुलाया।
उस समय न फोन होता था पास
जो कर लेती भैया से दो बात
ट्रेन वाले भैया को दिया धन्यवाद
टिफिन पकड़, किया रोना स्टार्ट।
बेटा छोटा, समझ न पाया
बोला माँ रोती क्यों हो
नानी माँ ने टिफिन भेजा खालो..
आप कहाँ थी? मामू ढूँढ रहे थे।
जब खोला टिफिन तो हैरान थी
एक नहीं, तीन डिब्बे
मीठी चूरी के साथ खीर व खिचड़ी दही...
खिचड़ी देख आँख भर आई
जल्दी से थेले में हाथ घुमाया
दो प्याज को रखे पाया।
हैरान थी माँ ने याद रखा
खिचड़ी का डिब्बा साथ भेजा
उस दिन जैसा खाना कभी न खाया टिफिन लाने वाले लड़के को खिलाया
गिली आँखों को सब निहार रहे थे
माँ-भैया के गुण गा रहे थे।
बेटा हैरान, कोई खिचड़ी के लिए भी रोता है
कैसे समझाऊँ माँ का प्यार क्या होता है !!
आज बेटा जवान हो गया है
इसे पढ़ भावुक हो गया
उसे नहीं याद उस दिन की कहानी
पर मेरे जहन में बस गई ये कहानी...
पसंद अपनी अपनी, ख्याल अपना अपना
आज न माँ है न खिचड़ी का स्वाद
बस हर दिन बच्चों के साथ
नई चीज नया स्वाद।