क्या कोई कविता…
क्या कोई कविता…
उस दिन जब दुनिया ने मिलकर
प्रेम-पर्व मनाया था ,
नफ़रत ने भी पुलवामा पर
मायाजाल फैलाया था।
चाहे उन कायरों को संपूर्ण देश की
बद्दुआ लग जाएगी,
पर क्या कोई कविता उस माँ का
आँचल फिर भर पाएगी ?
विशाल हिमालय भी कृतज्ञ हो
अपना शीश झुकाएगा,
आसमान नम आँखों से
विलाप करता दिख जाएगा।
लहू रंगी धन्य धरती की
रूह भले काँप जाएगी,
क्या कोई कविता अब उस माँ का
आँचल फिर भर पाएगी ?
बदला लेने के सरकार के वादे
पिता का ह्रदय नहीं जोड़ पाएँगे,
तिरंगे- लिपटे प्राण- विरक्त उन तनों का
आभार वे नहीं जता पाएंगे।
देश भर की श्रद्धांजलियाँ
उस बेटी के आँसू नहीं रोक पाएँगी,
फिर क्या कोई कविता उस माँ का
आँचल फिर भर पाएगी ?
जिन वीर जवानों ने महायज्ञ में
अपना सब कुछ त्याग दिया,
उनके बलिदानों की महिमा
मोमबत्तियाँ व्यक्त नहीं कर पाएँगी।
अमर जवान ज्योति भभक कर
अनल- अश्रु बहायेगी,
क्या कोई कविता अब उस माँ का
आँचल फिर भर पाएगी ?