हुआ था हिटलर भी असहाय
हुआ था हिटलर भी असहाय
कुदरत की है देन अनोखी जीवन है अनमोल,
मोल समझ पाया जो इसका वही जिया दिल खोल ।
अगले पल में क्या होगा हर कोई है अनजान,
कौन जानता किसे मिला है कितने पल का दान ।
जो पल आकर गया न लौटा कभी दूसरी बार,
हम चाहे उपयोग करें या जाने दें बेकार ।
भला बुरा क्या किया समय पर कैसी छोड़ी छाप,
दिलवाते पहचान हमारे अपने क्रिया- कलाप ।
जैसा भी कुछ रचा बचेगा वही हमारे बाद ,
भले बुरे की तरह करेंगे लोग हमारी याद ।
शुरू शून्य से हुआ शून्य पर ही होना है अंत,
जीवन श्री-विहीन उतना ही जितना है श्रीमंत ।
शुभ ही लो शुभ ही दो सबको कुछ मत रखो उधार
विरलों ने ही समझा है यह जीवन का शुभ सार ।
मानव कुछ भी करे आखिरी है कुदरत का न्याय
पाप तले जब दबा हुआ था हिटलर भी असहाय ।