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Meenakshi Sharma

Classics

3  

Meenakshi Sharma

Classics

गुलालों के रंग

गुलालों के रंग

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देखे हमने तेरे रुख पे गुलालों के रंग,

धुल गये दिल से जैसे सारे मलालों के रंग


कितनी एतिहात से रखो इन्हें पर सच यही

पल में बिखर जाएंगे काँच के प्यालों के रंग


अश्क़ या कि हो पसीना पोंछने तक ठीक है

कौन देखता है उसके बाद रूमालों के रंग


चार दिन की सूखी रोटी वो झपट के खा गया

भूख देखती कहाँ है बासी निवालों के रंग


अठखेलियाँ करते कभी कहते हैं ये पहेलियाँ

कैसे खुशमिज़ाज़ हैं बच्चों के सवालों के रंग


मन्ज़िलों की रौनकें उनको फ़क़त नसीब हैं

जिसने न देखें अपने पैर के छालों का रंग।


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