शायद अब करार आए
शायद अब करार आए
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एक लम्हा लगा था यूँ कि शायद अब करार आए
इसी उम्मीद के सदके, उम्र सारी गुज़ार आए।
निभाया वादा शिद्दत से, कि हम जाने से पहले तक
तेरी दहलीज़ पर कितनी दफा जा कर पुकार आए।
खुदा के घर सभी कुछ था,कभी माँगा नहीं हमने
चंद साँसे ज़रूरी थीं वही ले कर उधार आए।
सँवरने और सजने से फर्क कुछ ख़ास न आया।
तेरी नज़रें जो पड़ जाएं तो मुमकिन है निखार आए।
कहाँ चाहा ये तुमने भी खलिश आ जाए रिश्तों में।
कहाँ चाहा था हमने भी कि इस दर्जा दरार आए।
तेरी आवाज़ सुनकर के सुकूँ आया है कुछ ऐसा
कहीं तपती ज़मीं पर जैसे रिमझिम सी फुहार आए।
