एक अपनत्व सा होने लगा है ,
इस बेजुबान कछुये से मुझे ,
जो शब्द एक ना बोले मुझसे ,
फिर भी लगता कितने शब्द कहे |
पाँच साल पहले आया था ये ,
घर में मेरे किसी नदी से ,
देख इसे मैं हुई थी बहुत खुश ,
टूवी नाम देकर पुकारा था उसे |
वो क्या खाता और क्या पीता था ,
ये सब भी मालूम ना था मुझे ,
पर बिन कहे ही सब समझ गई मैं ,
जब पशु प्रेम की चाह जगी मुझमे |
धीरे - धीरे हम बातें करने लगे ,
मेरे शब्द उसके कानों में पड़ने लगे ,
मेरे खाना डालने पर वो उछल जाता ,
सचमुच उसे देख तब बड़ा मज़ा आता |
फिर आया उसका जन्मदिवस अगले वर्ष ,
उसी तिथि को जब वो आया था मेरे घर ,
मैने अपने हाथों से उसके वस्त्र बनाये ,
ज़िन्हे पहन वो और खूबसूरत लगता जाये |
सच पूछो तो ये पशु प्रेम होता बड़ा निराला ,
एक पालतू पशु आपके घर में भरता उजियारा ,
इसलिये एक पशु सब ज़रूर पालतू बनाओ ,
और अपने जीवन को निर्मल करते जाओ ||