STORYMIRROR

shivendra 'आकाश'

Inspirational

4  

shivendra 'आकाश'

Inspirational

संवाद: महामारी और मानव।

संवाद: महामारी और मानव।

1 min
430


   काल प्रायोजित हूँ अत्याचारी

   मैं तो हूँ महामारी...........।

    

   निवाले पर निवाला होता है मेरा

   शिकार होता है मानव सारा

   जंजीरें भी जिन्हें न रोक पाई

   फैलकर मैंने ही तबाही मचाई।।

   

  बड़े बड़ो का अभिमान मैंने चकना चूर किया,

  विश्वशक्तियो को मैंने पलभर में ध्वस्त किया,

  जो कभी न झुकते थे,अपने को ईश्वर समझते,

  प्रकृति को खिलौना समझ खिलाते ये

  लगा मौतो का तांडव मैं तुम्हें सुलाती रे।।

    

  आंधी हूँ मैं न कुछ दिखाई देता,

  क्या है रंग? क्या है रूप? न दिखता।

  छोटा हो या बड़ा मुझे नही फर्क पड़ता,

  जाति धर्म का तो फिर सवाल नहीं उठता।।


  

सब जानते है मुझको काल प्रायोजित अत्याचारी

मैं तो हूँ महामारी..........।


मानव संवाद----


सही कहा तूने तू है काल प्रायोजित आत्याचरी

तू तो है महामारी............।


मैं मानव हूँ मुझमे वीर की मानवता समाई,

कालखण्ड के पन्नो में क्रूरता कब मुस्काई?

इक चिंगारी ने भी तमस को दूर भगाया,

छोटी-सी आशा ने भी आकाश थमाया।।


मनु ने आज ये प्रण लिया है,

मानव को हमने सजग किया है।

सामाजिक दूरी का पालक करना होगा,

महामारी का भी इलाज करना होगा।।


सहयोग की प्रीत जले तन मन में,

अपनो का ख़्याल रहे हर क्षण में।

हवा के वेग को कौन रोक पाया है?

दीपक ने भी अंधकार को हराया हैं!






Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational