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Surendra kumar singh

Inspirational

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Surendra kumar singh

Inspirational

आजकल अक्सर

आजकल अक्सर

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अक्सर आजकल जब

जीवन ठप्प सा है

लॉक डाउन के चलते,।

तो जब सिर्फ हम होते हैं

और सोचने का मन करता है

तो सोचना भूल जाता है

और आंख भर जाती नजारों से

दृश्यों से,चर्चाओं के अंदर से उभरते हुए बिम्बों से।

लबालब दृश्यों से भरी हुई आंखों से

कुछ बेहतर देखने की कोशिश में

कुछ सोचने का मन करता है

कुछ सोचना बस में नहीं रह जाता

बेबस सा हो जाता है मन सोच से।

दृश्य खींचतान करते हैं

मुझे देखो,मेरा हाल देखो

और प्यार उमड़ आता है

दृश्यों की धमाचौकड़ी के बीच मनुष्य पर।

दिखने लगती है उसकी दशा

झुंड के झुंड महामारी से

मरते हुये लोगों के बीच भी

उसके चेहरे पर उग ही आती है

मुस्कान जीते रह पाने की

उसकी कोशिशों में ये प्यार

और गहरा जाता है।

कितना अच्छा लगता आदमी

प्रकृति से प्राप्त जीवन को बचाने की कोशिश में लगा हुआ

सुख के तमाम निर्मित संशाधनों से

विरक्त होकर

किसी से आंख और हाथ मिलाने से कतराता हुआ।

जीवन बचाने की कोशिश करता हुआ।

लगता है मनुष्य को भी प्यार हो चला है प्रकृति से

और प्रकृति भी कम दिलचस्प नहीं है

किसी को प्रवेश नहीं करने देती

अपने निजाम में।

उसके निजाम में रहो

तो जीवन बचेगा और

सक्रिय हो उठेगा एक बार फिर

उसके साथ साथ

सुख के भौतिक संसाधनों से अलग थलग।


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