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Dimple Khanna

Inspirational

4  

Dimple Khanna

Inspirational

प्रकृति का प्रतिशोध

प्रकृति का प्रतिशोध

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कहता था तू स्वयं को विश्व की सर्वोत्तम कृति

और डरा है आज धूल से भी नन्हें कण से?!

कहाँ गया वह दंभ ,वह मद ,वह शान ..

लड़ता था आपस में ऐसे

जैसे इस धरा का स्वामी हो

और आज हाथ मिलाने से भी है भयभीत ..

होगा ही?


मैंने चेताया था

मिलजुल कर रहने का पाठ ,

हर बार तुझे पढ़ाया था


भुगत रहा है तू उसी खिलवाड़ का परिणाम

प्रकृति कर रही है तांडव

मच रहा है कोहराम


अब भी समय है

पर है केवल थोड़ा

संभल जाएगा सब केवल यदि

तूने दंभ को छोड़ा


अरे मूर्ख! अरे मानव

इतना सा अहसास 'करो ना "

हाँ, वही हूँ मैं

धूल से भी छोटा

पर तेरी औकात से बड़ा


विषाणु " कोरोना"।








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