मानव जाति कि देख दुर्दशा ये दिल
मानव जाति कि देख दुर्दशा ये दिल
मानव जाति कि देख दुर्दशा ये दिल खूब रोया है।
ना जाने किस ने महामारी का ये रक्त बीज बोया है।
देख इंसान भगवान् ने तेरी हालत ये क्या बनाई है।
अपने आप को सर्व शक्तिमान कहने वाले भी धराशाई हैं।
आज कोई ना पूछता कि तू हिंदू मुस्लिम या सिख ईसाई है।
ये महामारी है साहेब जाति धर्म का भेद भाव नहीं करती ये सच्चाई है
इसलिए -
हमको घर से बाहर नहीं है जाना।
सब मिलकर इसको है हराना।।
जब भी हम घर से बाहर जायेगे।
कहीं पर भी भीड़ नहीं जुटाएंगे।।
साफ सफाई का रखना है ध्यान।
बाहर से आते ही करना है स्नान।।
जब भी हम किसी व्यक्ति के संपर्क में आयेंगे।
हैंड वॉश या साबुन से २० सेकंड तक हाथ रगड़ रगड़ कर धोएंगे।।
स्वच्छ स्वसन के लिए मास्क है लगाना।
उपयोग किए मास्क को फेके न इसे है जलाना।।
नहीं तो ना जाने फिर से कौन जानवर आकर इसे खायेगा।
और ना जाने फिर कौन कौन सी बीमारी फैलाए गा।।
वक्त रहते हैं सभल जाना।
घर में ही रहना बाहर मत जाना।।
लिखते लिखते ये रात जायेगी बीत।।
कविता समझ गए तो ठीक है
वरना किसी शायर का लिखा हुआ गीत।।