मानव जीवन दोहा
मानव जीवन दोहा
तन को सब धोवत हैं
मन को धो सके ना कोय।
तन के धोवे का फल
जब निर्मल मन मैला होय।।
तन की सुन्दरता कौन देखत
मन की सुन्दरता लेती मोह।।
तन लाख सुंदर तो क्या
अगर वाणी मधु न होय।।
मन राम राम जपे
तन दिया पाथ कांटा बोए।
जग में कपि बैरी भी न बनो
फल उगे वैसा बीज दिया जैसा बोए।।
मन निछोह कर कर्म करो ऎसा
ईश्वर जाए प्रशंसा में खोये।
जीवन तो सब के होत हैं
पर मानव समान दुजा जीवन न कोय।।