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Archana Saxena

Inspirational

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Archana Saxena

Inspirational

प्रयोजन

प्रयोजन

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उर में उठती थी एक कसक

एक टीस सी वह दे जाती थी

मैं तो अपने में होकर गुम

बस सोचती ही रह जाती थी

क्यों पाया मैंने यह जीवन

कोई तो प्रयोजन होगा ही

क्यों बेमानी सी गुजारूँ मैं

कुछ और भी करना होगा ही

क्या जैसे जिया वह सार्थक था

या अभी कुछ करना बाकी है?


इस उम्र में आकर करूँ भी क्या

बस अब तो बुढ़ापा बाकी है

फिर सूझी मुझको राह एक

 जो अंतर हर्षित कर गयी थी

सोई हुयी लेखनी की ताकत

अब फिर से जाग्रत हो गई थी

यदि हौसला मन में होता है

पत्थर में फूल खिल जाते हैं

मंजिल खुद सामने आती है

 हम स्वयं को खुद पा जाते हैं।।

   

 


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