पर्यावरण जीवन का आधार
पर्यावरण जीवन का आधार
प्राकृतिक आपदा को हमने स्वयं जन्म दिया,
तटों की माटी, इस सुरक्षित हवा को हमने ही दूषित किया।
बसे बसाए शहर नदी के उफान में ओझल हो गए,
प्राकृति के साथ की गई छेड़ छाड़ का कुछ मासूम शिकार हो गए,
अपनी लालसा के चलते मनुष्य ने प्राकृति का अपमान किया,
नदी,पेड़, पहाड़ आदि सबको बर्बाद कर दिया।
प्राकृतिक आपदा को हमने स्वयं जन्म दिया,
तटों की माटी, इस सुरक्षित हवा को हमने ही दूषित किया।
मनुष्य ने धरती के सीने पर हजारों घाव दिए,
धरती की शोभा उसके आभूषण हमने छीन लिए,
विकास की ये कैसी नीति हमने अपनाई,
क्यूं विकास की अंधी दौड़ में हमे प्राकृति नज़र ना आई।
प्राकृतिक आपदा को हमने स्वयं जन्म दिया,
तटों की माटी, इस सुरक्षित हवा को हमने ही दूषित किया।
अपने लालच और लोभ में हमने धरती को खोखला कर दिया,
कोयला, हीरा,मोती आदि की चाह में हमने हजारों नदियों और धरती को बंजर बना दिया,
आधुनिकरण को प्राप्त करने के लिए लाखों पेड़ो की बली चढ़ा दी गई,
अंकुर फूटने से पूर्व ही धरती की कोख उजाड़ दी गई।
प्राकृतिक आपदा को हमने स्वयं जन्म दिया,
तटों की माटी, इस सुरक्षित हवा को हमने ही दूषित किया।
नष्ट होते इस पर्यावरण को अब हमे बचाना होगा,
इस तबाही को रोकना होगा,
प्राकृति को अब सवाराना होगा,
जो घाव दिए है हमने धरती को उन घावों पर मरहम अब लगाना होगा।