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Sandeep Kumar

Abstract

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Sandeep Kumar

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पर्वत की चोटी से जब

पर्वत की चोटी से जब

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पर्वत की चोटी से जब

निर्मल जल निकलता है

नदी तालाब नहर से होते 

समुंद्र से मिला जाता है।


अपना रास्ता खुद से वह

तय कर लेता है

नहीं किसी का कुछ भी

सुन वह रुक पाता है।


अगर कोई पथ पर उसको

रोकने का प्रयत्न कर लेता है

तब विक्राल रूप धारण कर 

तांडव मचाया करता है।


क्या शक्ति है जल का

तभी पता चल पाता है

बूंद-बूंद मिलकर कैसे

नदी नहर झील बन जाता है।


अगर नहीं मिले जल तो

प्यासे तड़प-तड़प रह जाता है

पंछी कलवर करते करते

प्राण तोड़ देता है।


बुंद बुंद जल के बिन

भूमि रेगिस्तान हो जाता है

तब जलचर प्राणी कहां

देखने को मिल पाता है।


नदी की आत्मकथा

दो शब्द में संदीप बताता है

गुरु गुरुवर के चरणों में 

अर्पित कविता कर देता है।


पर्वत की चोटी से जब

निर्मल जल निकलता है

नदी तालाब नहर से होते 

समुद्र से मिला जाता है।


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