प्रवाहिनी
प्रवाहिनी
मैं कल कल बहती नदिया हूं
विस्तार मेरा तुम मत आंको
मैं वेगमयी नित नित बहती
अविराम प्रवाह चेतना हूं।
संघर्षों से उन्मान मेरा
हरदम बढ़ता ही जाता है
इंसानों को पैगाम मेरा
हरदम ही सिखलाता है
जल से है मेरी प्रेम प्रीत
बढ़ते जाना है मधुर रीत
मार्ग खोजना मेरी जीत
तट से बंध रहना गई सीख
शशि की पावन किरणे
जब मेरे ऊपर गिरती हैं
जल हो जाता कितना निर्मल
ये लघु सरिता का बहता जल।
मैं संस्कारों में बंधी हुई
शिलखंड को आकार दे देती हूं
कितनी भी बाधाएं आयें
अपना पथ ना छोड़ती हूं
धारा मेरी अविरल बहती
ना रुकती ना थकती
तप्त हृदय शीतल करती
पोधों को जीवन देती
व्यवधान चाहे जितने आएं
दुर्गम पथ पर बढ़ते जाए
कामनाएं तभी हमारी पूरी हो
जब कर्तव्य बोध न बिसराएं।
