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Divya Mathur

Tragedy

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Divya Mathur

Tragedy

दोषी कौन ?

दोषी कौन ?

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मां का प्रतिशोध

पुत्र की जान ले गया

ये कैसा गिला था जो

जहान राज दुलारे काले गया।


निर्दोष को क्यों भेंट कर दिया

ममता को क्यों शर्मसार कर दिया

कैसे कर पाई होगी मां।


जीवन हलाल उस बेटे का

जिसको कोख़ में सींचा था

मासूम चीख गूंजी होगी।


जब हत्या का सोचा होगा

कैसे कर पाई होगी वो

फैसला कठिन इतना कठोर।


यदि लेना था प्रतिशोध उसे

कायर को सजा दिला देती

क्यों सजा स्वयं को दे बैठी।


क्या जी पाएगी वो मां होकर

निज बेटे की हत्यारी होकर

शूलों की शय्या पर सोएगी।


वो जीवन भर पछताएगी

घर छोड़ा था तो जी लेती

अभागी थी तो सह लेती।


ममता को क्यों बिसरा बैठी

तू स्त्री थी जग से रूठी

कारागृह में भी गूजेंगी।


यादें मासूम के पल पल की

चिता जली होगी कैसे

दिव्यांश तुम्हारे मोहक तन की।


कल आसमान भी रोया था

आपा उसने भी खोया था

प्रभु तुमने ही कोशिश की होती

जननी को समझाने की।


जो खुद हत्यारिन बन बैठी

अपना विवेक वो हर बैठी

क्या बिगड़ा उस हत्यारे का

जीवन ले बैठा राज दुलारे का।


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