अपेक्षाएं
अपेक्षाएं
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अपेक्षाएं वक्त के साथ मुखर होती गई
प्रेम के साझा परिदृष्य धूमिल होते गए
आशाएं डूबती गई सूर्य सरीखी
सामाजिक परिवेश के दबाव हावी
होते गए
मैंने घर को मकान होते देखा
स्वप्न जो साझा थे गई रात की बात हुए
ज्वलंत प्रश्न बेकार की बात हुए
तुम बदलते गए कभी वक्त के साथ
कभी हालात के साथ
मैंने तुम्हें केवल पुरुष होते देखा
क्यों नहीं बदलते मानवीय सरोकार
मरती जाती है संवेदनाएं
मैंने ज़िन्दगी को समझौता होते हुए देखा