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Divya Mathur

Abstract

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Divya Mathur

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पिता

पिता

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हर घर की धुरी होते हैं पिता,

कभी कोमल कभी कठोर होते हैं

पिता अविश्वसनीय पलों में

विश्वसनीय होते हैं पिता।

कोई समझे ना सही हमें समझते हैं

पिता,सपने जो देखे हैं

पूरा करने की राह दिखाते हैं पिता।

कभी मां,कभी चाचा कभी दादा

सभी रिश्तों की डोर संभाले हैं

पिता,भटका जो कोई राह से,

रास्ते पर ले आते हैं पिता,

अपने सुख दुख भूलकर

सबको संभाले हैं पिता।

सहज सरल और विनीत हैं

पिता तो कभी धीर गंभीर है पिता।

न्याय प्रिय, अनुशासन प्रिय हैं

पिता इसी से वंदनीय है पिता।


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