पृथ्वी पर
पृथ्वी पर
पृथ्वी पर ध्यान में
अवस्थिति माँ
सक्रिय है,
जो है
गुजर रहा है
और भविष्य आधारित
हो रहा है वर्तमान पर।
तनाव, उन्माद ,फितरत
नफरत, बेचैनी में डूबे हुए लोग
अपने हालात में
अपनी ही कमी महसूस कर रहे हैं,
खुद को बदल रहे हैं
और मां अद्भुत रूप से
रूपांतरित हो चली है
और उस रूपांतरण का रंग
चढ़ रहा है दुनिया पर
जो होना चाहिये
वही हो रहा है
न कोई नारा
न कोई प्रोजेक्ट
खामोशी से सब बदल रहा है
और जो आवाजों का शोर है न
आप के चारों तरफ
वो जड़ता की चीख है
यथास्थिति बनाये रखने की
निष्प्रयोज्य कवायद सी।