प्रणय-पथिक
प्रणय-पथिक


प्रणय-पथिक के पथ में प्यारे
कितनी बाधाएँ आएंगी
इस मदिरा के अनन्त सागर में
जब मेरा अस्तित्व घुला था
जाने कैसा समय था वह जब
मेरे गर्भ में प्रेम-पला था
कहना सरल है किन्तु अब कैसे
प्रेम चिता को अग्नि दे पाएँ
सखी तुम्हीं बोलो अब कैसे
नव-शिशु को अंतिम स्नान कराएँ
जग की मर्यादाएँ मुझको
बिन अग्नि सती बनाएंगी
प्रणय-पथिक के पथ में प्यारे
ज्यूँ मरणा-सन्न मौन में कोकिल
कोई नवगीत सुनाती हो
नववधू मृतक के आँगन में
सुंदर अल्पना सजाती हो
सोच समझ कर जीवन की सब
घटनाएं ऐसी घटती हैं
उल्लास की यह पतली परतें
दुःख सागर को ढक रखती हैं
उपहास कर रही परिस्थितियाँ
कब तक आनन्द मनाएंगी
प्रणय-पथिक के पथ में प्यारे