गीतिका
गीतिका


चन्द्र-किरणों में लिपट वह रागिनी गाने लगी
श्वेत-साड़ी सी पहन कर यामिनी गाने लगी।
मग्न था बंसी की धुन में लोक भी, परलोक भी
स्वंय धरातल पर उतर भू-स्वामिनी गाने लगी।
स्वर्ण मृग के मोहि; मन की मूर्खता को देख कर
चेतना हँसने लगी, मन मोहिनी गाने लगी।
जब उसे चूमा प्रथम वर्षा की पहली बूँद ने
मंद झोंके खिलखिलाए, दामिनी गाने लगी।
एक तारक में दिखी छवि नभ-निवासी की उसे
तीव्र स्वर में फूट वह भू-वासिनी गाने लगी।