प्रकृति प्रेम
प्रकृति प्रेम
पास पास तू है सदा,
भटके भटके हम ही रहे,
भागदौड़ की इस जिंदगी में,
खुद से दूरी बढ़ाते गए,
जो कभी न संजोना,
वही संजोते ही रहे,
जो था संजोना,
दूर उससे होते गए,
चलो आज जाग कर,
प्रकृति मय हम हो जाए,
प्रकृति संग जिये,
प्रकृति में ही खो जाए,
प्रेम से हम बने,
बस प्रेममय हो जाये,
समा ले प्रकृति को स्वयं में,
प्रकृतिमय ही हो जाये,
न पीड़ा होगी न संताप तब,
बस तू ही तू होगा तब,
न कुछ मैं होगा,
सामीप्य का अहसास होगा,
बस तेरा ही अहसास होगा,
वह पल बस खास होगा,
जब कण कण में तेरा अहसास होगा,
चलो कुछ प्रयास करें
प्रकृति प्रेम का अहसास करें।।
