प्रकृति की पुकार
प्रकृति की पुकार


ये प्रकृति शायद मुझसे कुछ कहना चाहती है,
कान के पास से गुजरती हवाओं की सरसराहट
चिड़ियों की मधुर चहचहाहट,
एक संगीत हवाओं में घोलती है
ये प्रकृति सचमुच ही,मुझसे कुछ बोलती है।
कह रही है ये ठंडी हवा महसूस करो मुझे,
तन-मन को तुम्हारे ताजगी से भर देती हूँ,
अगर यूँ ही पेड़ काटते जाओगे,
तो क्या महसूस मुझे कर पाओगे ?
नदियों का बहता सर-सर पानी कहता है पल-पल मुझे
आओ मेरी शीतलता को समा लो अपने भीतर
कुछ पल मेरे तट पर बैठ कर मजा लो मेरे जल का,
फिर कहाँ मुझे तुम पाओगे ?
जब इसी तरह मेरे तल को गन्दगी से भरते जाओगे
कह रही है चिड़ियों की टोली भी मुझे,
जब तुम अकेले होते हो,तुम्हारे मन को मोह लेती हूँ मै,
ची ची ची ची कर के तुमसे ढ़ेरो बातें करती हूँ मै,
पर अब मुझे एक बात बताओं,
अगर तुम सब इस तरह प्रदुषित पर्यावरण करोगे
तो कैसे साँस ले पाऊँगी मैं ?
सुन्दर रंग-बिरंगी खुश्बू से भरी ये धरा भी,
मुझको, मेरे जीवन को महका देती हैं,
मेरी थके हुए पलो को अपनी सुन्दरता से भर देती है।
और पास आकर चुपके से मेरे कानो में कहती है,
अगर इस तरह ही मुझे कूड़ा करकट से भर दोगे,
तो बताओं अपने जीवन को कैसे सरलता से जी पाओगे ?
बोलो -बोलो मुझे तुम कैसे बचाओगे ?
आओ सब मिल एक प्रण करे,
प्रकृति की आवाज को सुन, उसकी भावनाओं को समझे
प्रकृति की रक्षा हेतू मिल कर कदम बढ़ाए,
अपना पर्यावरण बचाए, अपना पर्यावरण बचाए।