प्रकाशित लेखिका
प्रकाशित लेखिका
मुझे ना खरीदो सिक्कों में ,
मैं एक बदनाम लेखिका ,
मुझे पढ़ने वाला सोचता है ,
कि क्यूँ ना बन सकी ,
मैं एक प्रकाशित लेखिका ?
मैं उम्र भर छुपाती रही ,
हम दोनों का वो अनोखा प्यार ,
जिसे अंजाने में पिरोया था मैंने ,
दे कुछ शब्दों का संसार ,
अब कैसे कर दूँ उसका व्यापार ?
वो पुस्तक बन जब जग में फिरेगी ,
मेरी और उसकी बदनामी बढ़ेगी ,
दुनिया पूछेगी मुझसे तब ये सवाल ,
बता वो कौन है जिसने किया इतना बवाल ?
तब सोचो ज़रा क्या होगा मेरा हाल ?
कितने रिश्तों में हूँ मैं बंधी ,
हर रिश्ते की एक मर्यादित कड़ी ,
किस रिश्ते को मैं तब छोड़ पाऊँगी ,
अपनी की हुई गलती पर फिर पछताऊँगी ,
इसलिये मुझे नहीं बनना एक प्रकाशित लेखिका।
वो उम्र भर मुझे समझाता रहा ,
मत लिखो जो तुम्हारे दिल ने कहा ,
मैंने सुनी नहीं उसकी कोई बात ,
बस लिख डाली उसके संग गुजारी हर रात ,
अब नहीं बनना मुझे एक प्रकाशित लेखिका।

