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Mukul Kumar Singh

Abstract

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Mukul Kumar Singh

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परिवर्तन-परिवर्तन

परिवर्तन-परिवर्तन

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परिवर्तन-परिवर्तन की पुकार सुन रहा हूं,

कैसा परिवर्तन-किसका परिवर्तन-

कौन परिवर्तन कर रहा है,सुन भ्रमित हो गया हूं।

युवाओं में उत्साह बढ़ गई है,

युवतियों में लड़ने की घोषणा हो गई है,


देश को बदलता देख रहा हूं।

उत्साह और लड़ाई-दोनो एक सिक्के के दो

चमचमाती छवि बन चुका है,

सभ्यता और संस्कृति अति प्राचीन बन गई है,

कायरता को उदारता प्रमाण दे दी गई है,

आधुनिकता के नाम पर इतिहास की तोड़-मोड़ देख रहा हूं।


आनंद हीं आनंद का शोर है आधुनिकता की अंधी दौड़ है,

जब भी आंख खुली तभी भोर है।

राजनीति करना हीं बड़ा व्यापार है अनपढ़ों के शासन में

शीश झुकाते शिक्षितों की भरमार है।


परिवर्तन-परिवर्तन की मांगों से समाज हो गया कंगाल,

लोकतंत्र में परिवर्तन के आगे जल रहा राजस्थान से पश्चिम बंगाल।

कैसा परिवर्तन-किसका परिवर्तन-कौन करेगा परिवर्तन,

देश का युवा स्वयं हीं राष्ट्रीय संपत्ति को लगाते आग।

राष्ट्र की चिंता नहीं व्यक्तिगत सुख की चाह,

अग्निपथ के विरोध में पत्थरों की बौछार।


रेल की पटरियां उखाड़ रेल की बोगियों को बनाते राख,

मजधार में यात्री भूखे-प्यासे भर रहें आह।

कब विराम लेगी यहां परिवर्तनों की रेलमपेल,

सब जानती है जनता फिर भी बैठी है मौन।


बेशर्म पेट लिए मैं भी बौखलाया हूं, फिर भी छोड़ा नहीं आस।

जागेगा युवा-थम जाएगा देश विरोधियों का सत्ता पाने का ठेलमठेल,

होगा सबका कल्याण-खुली हवा से भर उठेगी सच्चा परिवर्तन।


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