Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Nand Kumar

Abstract

4  

Nand Kumar

Abstract

परिपूर्ण प्रेम के ज्ञाता तुम

परिपूर्ण प्रेम के ज्ञाता तुम

1 min
537


परिपूर्ण प्रेम के ज्ञाता तुम,

मै प्रेम नेम को क्या जानूं,

मेरे बारे में सोचो तुम,

मैं सदा ह्रदय की निज मानूं।।


मै नही कि सा तन भोगी,

मै मन का योगी सदा रहा,

नही किसी से मिला प्रेम पर,

नही ह्रदय को मेरे खला।।


प्रेम चकोर चांद से करता,

 धरती करती अम्बर से ।

ऐसा ही है प्रेम हमारा ,

ध्याऊ तुम्हें सदा मन से।।


सर्वस्व मिटाकर प्रेम की,

खातिर जीना हमने सीखा है,

रहे सदा प्रमुदित प्रियतम,

गम भी उसका सुख देता है।।


कभी किसी से कुछ पाने की,

कभी न अपनी चाह रही,

मिले सभी को सुख ऐसी ,

तुम से ही सदा अरदास रही ।।


जग हंसे करे उपहास मेरा,

पर नही फर्क कुछ पड़ना है,

कुछ जग से है नही चाह,

बस प्रभु करुणा पर जीना है।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract