प्रीतम आवन
प्रीतम आवन
जब बासंती पवन शनै शनै चलती है
कामिनी के छोटे से ह्रदय में हुक उठती है !
ज़ब ऋतुराज़ के आवन के पदचाप से
मतवाली कोयल बाग में कुहूक उठती है!
ऋतु ज़ब शरद से बसंत में परिवर्तित होता है
पी के आहट से बावरा मन हर्षित हो जाता है!
अपने द्विरादमन की व्याकुल हो राह तके गोरी,
उसे भला बाबुल का आँगन अब कहाँ सुहाता है !