प्रीत के दोहे
प्रीत के दोहे
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सांची प्रीत मन बसाई,
प्रीत उसी की होय धोखा
तो जग की रीत,
पाकर ही कुछ खोय।
हर पहर तेरा खयाल,
और सिवा क्या काम
जो भी मेरा कर्म है,
उसमें तेरा नाम।
मेरा हो के मेरा न,
ऐसा तेरा चैन जहां
देखूं तू ही तू,
ऐसे मेरे नैन।
कुछ खास तेरी प्रीता,
जहान कस्ता तान
मेरा तो हृदय रोता,
निकली चीखें जान।
मैं तड़पा तो और भी,
वो सोते बेखबर इकतरफा
प्रीत लगाई,
पर करते है सबर।