प्रीत बिना
प्रीत बिना
गुजर रहा है हर पल ऐसे
पिया तुम्हारी प्रीत बिना
ऋतुओं में जैसे ऋतुऐं सूनीं
मनभावन ऋतुराज बिना।
हृदय में तुम बसते ऐसे
फूल खिले मधुबन में जैसे।
पंछी उड़े गगन में जैसे
कूक रही हो कोयल जैसे।
स्वर बसे हो कंठ में जैसे
कर में बाजे साज हो जैसे।
मन में वीणा बाजे जैसे
हृदय में तुम बसते ऐसे।
गुजर रहा है हर पल ऐसे।

