परफ़ेक्ट इश्क़
परफ़ेक्ट इश्क़
उनके सामने आते ही हमारी
ज़ुबान से शब्द यूँ फिसल गए,
बोलना कुछ और चाहते थे
और बयाँ कुछ और कर गए।
खुदा की रहमत हुई और
मौका हमें फिर एक बार मिला,
लेकिन इस बार हमारे शब्दों से
पहले वो जनाब खुद फिसल गए।
हँसी आ रही है?
लेकिन कहानी इतनी ख़ुशनुमा नहीं
चोट लगी उनको ऐसी की डॉक्टरों ने कहा कि
जनाब फिर कभी चल न पाएंगे।
लेकिन हमें इसकी आदत कहां,
हमें तो 'परफ़ेक्ट इश्क़' चाहिए था।
फिर क्या, उन्हें उनके हाल पे छोड़ हम
स्वार्थी होकर अपने रास्ते चल दिए।
फिर कहानी दोहराई गयी,
हमें फिर से किसी से प्यार हुआ,
लेकिन हम भी कहां परफेक्ट थे,
तो इस बार वो हमारे दिल को
चोट पहुँचाकर निकल गए।