मर चुके हो तुम
मर चुके हो तुम
इस ज़िन्दगी की कश्मकश से
जूझ कर भी अगर अपने आप को
ये तस्सली दे पा रहे हो की
खुश हो तुम लेकिन अंदर ही अंदर
जानते हो कि ये सब झूठ है,
तो मर चुके हो तुम।
रोज़ सोने के ठीक पहले और
रोज़ उठने के ठीक बाद अगर
अपने आप को खोया हुआ सा
महसूस कर पा रहे हो,
तो मर चुके हो तुम।
अगर खुश रहने के लिए तुम्हें
और लोगों की ज़रूरत पड़ने लगी है,
तो मर चुके हो तुम।
अगर औरों को मरता देख खुद को
ये तस्सली देने लगे हो कि ज़िन्दगी
ऐसी ही तो होती है, तो मर चुके हो तुम।
अगर तुम्हें शांत होने और अच्छा
महसूस करने के लिए गाने सुनने की
ज़रूरत पड़ने लगी है,
तो मर चुके हो तुम।
अगर तुम भी इस ताक में बैठे हो कि
कभी तो तुम्हारी ज़िन्दगी में भी
कुछ अच्छा होगा और सब ठीक हो
जाएगा, तो मर चुके हो तुम।
अगर अब तुम्हें तुम्हारी मनपसंद चीज़ों
के लिए भी समय निकालने का
मन नहीं करता, तो मर चुके हो तुम।
अगर इन चंद अल्फाजों को पढ़कर तुम्हें
ये महसूस होने लगा है कि तुम मर चुके हो,
तो मर चुके हो तुम।