प्रेयसी की बातों को
प्रेयसी की बातों को
वह कहती रहती है
वह अपनी प्रेयसी की
बातों को
एक भजन कीर्तन की ही तरह
बड़े ही मनोयोग से
सुनता रहता है
यह सिलसिला कभी
थमेगा नहीं
तब तक चलेगा
जब तक
एक प्रेयसी सुनाने वाली होगी और
एक उसका प्रेमी उसे सुनने वाला
होगा
इस झूठ के सागर में
एक भी गागर सच की नहीं
वह बातों में मिठास
घोलकर
इतना विष उगलेगी कि
कब सारा वातावरण
फिजायें
हवायें
सांसें
रिश्तों के सागर इनकी
चपेट में आकर
जहरीले हो जायेंगे और
सभी इस विष को जाने अंजाने पीकर
हमेशा के लिए
एक जहरीली नींद
सो जायेंगे
यह सब कैसे हुआ
किसी को
इस सच का कभी
पता ही नहीं
चलेगा।
