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Neeraj pal

Abstract

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प्रेम योग की साधना

प्रेम योग की साधना

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 यह एक सच्ची प्रेम कथा है जो भगवान श्री कृष्ण के ही जीवन से सम्बन्धित है, एक बार रुक्मिणी इत्यादि ने भगवान से शिकायत की कि हम आपकी इतनी सेवा करती हैं किन्तु हमारी तारीफ तो आप कभी नहीं करते, आप तो हमेशा गोपियों की ही तारीफ करते रहते है। उस समय भगवान कृष्ण ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया।

 दो-तीन दिन बाद भगवान कृष्ण यह बहाना बनाकर लेट गये कि मेरे सिर में भयंकर पीड़ा हो रही है। कई वैद्य बुलाए गये, किन्तु उसका जब कोई इलाज नहीं हुआ तो किसी ने भगवान कृष्ण से पूछा कि भगवन इस बीमारी का इलाज क्या है। उन्होंने कहा कि अगर किसी भक्त की चरण-रज मिल जाए तो मैं ठीक हो सकता हूँ। वह बोला कि यह तो बहुत सरल काम है, आपके तो इतने भक्त हैं, कोई भी चरण-रज दे देगा ।भगवान बोले कि तब देर क्यों करते हो, जाकर ले आओ।

 वह पहले रुक्मिणी के पास पहुँचे और भगवान की बात कही। रुक्मिणी बोली कि नहीं,मैं चरण-रज देकर अपने को पाप की भागी नहीं बनाना चाहती। तुम किसी अन्य भक्त के पास जाओ। ऐसा करते-करते जब वह थक गया तो भगवान कृष्ण के पास आया और कहा कि भगवान भक्त की चरण-रज तो बहुत दुर्लभ है, कहीं मिलती ही नहीं। तब भगवान कृष्ण ने कहा अगर सब जगह प्रयास कर लिया है तो अब गोपियों के पास भी जाकर आओ।

 वह जब गोपियों के पास गया तो गोपियों ने कहा कि तुम जितनी चाहो उतनी चरण-रज ले जाओ, हम तो कृष्ण को किसी तरह स्वस्थ देखना चाहती हैं। जब उसने रुक्मिणी की कही बात गोपियों को बताई तो गोपियाँ बोली कि हमें ऐसा कोई भय नहीं है कि हमारी क्या गति होगी, हम नरक क्या घोर नरक में भी जाने को तैयार हैं, हमें इसकी परवाह नहीं है। हम तो यह चाहती हैं कि भगवान कृष्ण स्वस्थ रहें।

 वास्तव में यही असली प्रेम है, यही प्रेम योग की साधना है। आज इस कलियुग में निष्काम प्रेम बहुत कम ही देखने को मिलता है। हर व्यक्ति स्वार्थी प्रेम में ही डूबा हुआ है।


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