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Kusum Lakhera

Classics Inspirational

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Kusum Lakhera

Classics Inspirational

प्रेम शुद्ध भाव !

प्रेम शुद्ध भाव !

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सुनो लड़कियों प्रेम वह नहीं 

जो बाह्य है

प्रेम वह नहीं

जो अधजल गगरी

की तरह छलकता है


प्रेम तो शुद्ध भाव है

अनुभूति है संवेदना है

वह सिर्फ़ आकर्षण नहीं

वह उथला नहीं

वह गहरे सागर सा गहरा 

वहाँ नहीं कुछ तेरा मेरा

नहीं वहाँ विद्वेष या छल

वह बहती सरिता सा कल कल जल !


वह झील का सुंदर कमल

वह गूंगे के गुड़ सा निर्मल

शब्दों से न कह पाओ ऐसी गजल

प्रेम तीन घन्टे की बॉलीवुड की कहानी नहीं

वह तो मीरा की भक्ति सा !


तुलसी की चौपाई सा !!

सुर के कान्हा सा, गोपियों के विरह सा

भक्त के लिए भगवान सा

जिज्ञासु के किए ज्ञान सा

दीपक की ज्योति सा उज्ज्वल

कल कल बहती लोकमाता गंगा सा पावन


हरिश्चन्द्र के सत्य सा 

श्रवणकुमार सा पितृभक्त 

नहीँ रूप पर आसक्त 

वह नहीं वासना का भक्त

वह तो परम् आत्मास्वरूप निःस्वार्थ भाव !


वह तो निर्गुण परमब्रह्न समान

नहीं व्याख्या सम्भव हो पाए 

प्रेम शब्द में सृष्टि समाए !


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