प्रेम की दुनिया
प्रेम की दुनिया
चलो बसा ले बस प्रेम की दुनिया,
जहाँ नियम बस प्रेम का चलता हो,
हर जीव का दूजे से बस प्रेम का ही नाता हो,
न लेने का हो भाव वहाँ, बस देने का ही भाव हो,
एक धर्म हो प्रेम का बस,
और प्रेम की एक भाषा हो
कण कण में जहाँ प्रेम भरा हो,
बस प्यारा ही नाता हो,
हो वो वसुधा ऐसी ही जहाँ,
खुशियो देने का भाव हो,
दुख न कोई हो निशां,
दुःख बटाने का भाव हो,
न हो दीवारे फिर भेद भाव की,
न द्वेष,दम्भ और नफरत हो,
बस प्रेम करूणा में भीगा
हर प्राणी का कण कण हो,
न हो भेद कोइ वहाँ पर,
भाषा,धर्म,रंग रूप का,
प्रेम का चोला पहना बस
वहाँ हर एक बन्दा हो,
प्रेम जहाँ अंतस में उपजे,
भाषा भी बस प्रेम की हो,
ले चल मुझे हे परमेश्वर,
बस ऐसे ही एक देश में,
रहते हो जहाँ हर प्राणी,
बस प्रेम के ही भेष में,
तन मन हो जहाँ प्रेम से रंगा,
प्रेम ही जहाँ उपजता हो,
ऐसा ही एक देश प्यारा,
पूरी विश्व वसुधा हो।।
