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Rahulkumar Chaudhary

Romance

4  

Rahulkumar Chaudhary

Romance

प्रेम के फूल

प्रेम के फूल

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बैरंग लौट आते हैंसब खत मेरे,

सुना तुम्हारे मन के पते पर

कोई शख्स, लौटा देता है 

हर नज़्म मेरी, 


प्रेम में लिपटीं नन्हें फूल ओढ़े वो नज़्म मेरी

बड़ी उदास हो लौट आती मुझ तक,

झगड़तीं मुझसे लिपट रो पड़तीं हैं


कहतीं कभी तो कुछ शब्द चुनकर 

ऐसे मुझको ,संवार दो बैरंग न लौटूं 

फिर मैं कभी उस मन की जमीं से 

मैं उन्हीं शब्दों की

तलाश में, घड़ी घड़ी बिक रहा हूँ

कभी तो पहुँचूंगा मन में तुम्हारे 

मैं बस प्रेम ही लिख रहा हूँ ।।


कोई तो नज़्म होगी ऐसी 

जो लौटेगी नहीं मन से तुम्हारे

कभी तो ये नज़्म भी पहुंच तुम तक

मुस्कुराएंगी जी जाएंगी ।


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