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परदेसी का प्यार

परदेसी का प्यार

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मैंने उसे देखा था

कल रात की सुबह के बाद,

वो कुछ अजीब सी दिखी मुझे।


बाल बिखरे से थे

और चेहरे पर भी सिलवटें थीं

मानो सोई ना हो रात भर...


बिन्दिया भी कहीं गुम थी

और होंठ भी सूखे से ही थे।


"कुछ हुआ है क्या ?"

मैंने आदतन सवाल किया उससे।

"नहीं...बस थोड़ा देर से सोई कल रात"

उसने नज़रें चुराते हुए कहा मुझसे।


"क्यों ? सोने नहीं दिया

तुम्हारे परदेसी ने ?"

मैंने उसे छेड़ दिया।


"नहीं... सोने नहीं दिया उसने मुझे"

उसने सहज ही कह दिया।


"बहुत दिनों में आता है...

बहुत प्यार जताता है... है न ?"


"हाँ, प्यार जताया उसने

माँ का ख्याल नहीं रखती कह कर,

प्यार जताया उसने

मेरे पीछे से किससे मिलती हो कह कर,


प्यार जताया उसने कल रात

मुझ पे हावी हो कर...


बस कुछ थप्पड़ मारे

और बाल खींच लिए।


ये ही प्यार है उसका

बहुत दिनों बाद वाला...

वो कभी कभी आता है न"


मैं चुप रही और सोचती रही कि,

क्या सच में ये प्यार था ?


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