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प्रचलित अंधविश्वास

प्रचलित अंधविश्वास

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सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम 

ऐनक डाल के धोती पहने ,

घर से निकले लालाराम ।

बीच सड़क पर पान चबाते 

निकले तन कर जैसे सांढ ,

बिल्ली मासी काट के रस्ता ,

कर गयी मानो सत्यानाश ।

बुरा भला वो लगे सुनाने क्युकि,

बीच मे अटका उनका काम ,

वापस लौट चले घर को ,

सोचा अब कर लूँ विश्राम ।

सीताराम -4 ।

 

अब आयी रामू की बारी ,

करने चला खेत पर काम ।

हाथ मे हल , बैलों को संग ले

करना नहीं तनिक विश्राम ।

जाने कहाँ से आया बिच्छू 

डंक मार भागा शैतान ,

रामू वहीं  गिरा धडाम !

मुँह से निकला हाये राम ।

जमा हो गयी भीड़ वहाँ पर ,

सबके अपने अलग बखान ,

कोई बोले बुलाओ वैद्य या 

बाबा को भेजो पैगाम ।

बाबा पहुँचे लिऎ हाथ मे 

डंडा , झोला और सामान ,

लगे सुनाने तंत्र-मंत्र और 

भष्म कलोपित अनुसंधान ।

तब तक बिष पहुँचा दिमाग तक ,

नील पड़ा शरीर तमाम ,

रामू निकला अंत मार्ग पर ,

लोगो को ना इसका ज्ञान ,

लगे बोलने करा हो इसने शायद,

दुष्कर्म तमाम ।

सीताराम -4।

 

दुर्गापूजा आये साल मे ,

ये तो है इक पर्व महान ।

नवरात्रों मे पूजा करके ,

माँगे माँ से धन और ज्ञान ।

गॉवो मे कुछ है अजीब ,

कहते आती देवी माँ ,

किसी भक्तन की देह मे घुसकर,

करवाती उससे सब काम ।

जिसकी काया आती माता ,

उससे डरते सब जन-मान ,

करते उसकी पूजा-वंदन ,

देते है उपहार तमाम ।

सीताराम -4 ।

 

हीरा-मोती दो सखा ,

करते सारा काम समान ।

विद्यालय वो पढ़ने जाते ,

खेलो मे अव्वल स्थान ।

लगी रोक अब खेल कूद पर ,

अब तो करना है कुछ काम ,

अंत परीक्षा खड़ा हुआ आ ,

इससे पाना है अब त्राण ।

इम्तहान देने घर से ,

निकले लेकर राम का नाम ,

अच्छॆ अंक अर्जित करके ,

करना ऊँचा बाप का नाम ।

सहसा मोती लगा बनाने ,

मुँह , नाक और काम तमाम ,

आयी छींक जोर की अचानक,

उसको ना था इसका ज्ञान ।

ओ भगवन, अब क्या होगा ?

अधर मे लटके उनके प्राण ,

बोला था मैने तुझसे कल ,

मत जाना अमरूद बगान ।

सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम ,

सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम ।

 


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