परछाई
परछाई
जैसे एक दिन पंख पसारे
उड़ जाती छोटी चिड़िया
वैसे इक दिन उड़ जाएगी
छोड़ मुझे मेरी भी गुड़िया
नए गगन में, नए सफ़र में
मिलेंगे उसको साथ कई
हो के जुदा मां के आंचल से
बसेगी दुनिया अलग नई
पर हो पाएगी जुदा कभी क्या
यादें मुझसे जुड़ी हैं जो
अलग मुझे कर पाएगी क्या
परछाई मेरी है वो
इन्हीं विचारों में अक्सर
खो जाती है बेटी की मां
करके अलग दिल का टुकड़ा
हर दिन ये पीड़ा सहती मां
मां-बेटी का रिश्ता अक्सर
परछाई के जैसी होती
हर मां में एक बेटी दिखती
और बेटी मां जैसी होती।