प्रार्थना..!
प्रार्थना..!
ना ना करते विरोध करते,
हर योजना का लाभ भी लेते।
जाति धर्म की बंदिशों में,
मनावता का दहन भी करते।
माना विरोध करना है,
संवैधानिक हक।
हर कार्य योजना में,
लेकिन कब तक।
समझो या समझा दो,
विचार धारा अपनी बता दो।
चाहते एक और इंसानियत की हार,
या फिर कोरॉना को हरा दो।
प्रधान हूँ मैं तुम्हारा,
ना दूसरे मुल्क का।
ज़िंदगी तुम्हारा तो मौत भी तुम्हारा,
ना दूसरे मुल्क का।
इच्छा मेरी बस इतनी एक,
हर हाथ मिल बने अनेक।
हार जाओ इच्छाओं से,
ख़ुद को बाहर ले जाने से।
जिता दो अपनी हार से,
मौत वाले पैग़ाम से।
फिर कभी कर लेंगे पूरी,
अधूरी इन इच्छाओं को।
सारी तेरी समस्याओं को,
बारी-बारी विपदाओं को।