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krishan kumar sati

Abstract Action Inspirational

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krishan kumar sati

Abstract Action Inspirational

*प्रारब्ध ऐसा भी*

*प्रारब्ध ऐसा भी*

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सूखे पेड़ की पत्तियों सा, बिखरा हुआ,

कुछ शांत मन सा अपनी व्यथा सुनाता।

  एक बिगड़ा हुआ प्रारब्ध।


रात के तिमिर में, कहीं आशाओं का उजाला सोचते हुए,

आगे को कदम बढ़ाता,

   एक बिगड़ा हुआ प्रारब्ध ।।


देखता है मृत्यु को अपने सिरहाने के पास।

मगर रखता है जीने की एक मीठी आस।

   एक बिगड़ा हुआ प्रारब्ध।।


जीत लेगा हर चुनौती हर जीवन की जंग को।

टूटे हुए मन को, देता है पुनः एक शक्ति जीने के लिए।

  एक बिगड़ा हुआ प्रारब्ध।।


जीवन ही जीवन को जीवन जीने की कला सिखा देता है।

हर व्यक्ति गिर कर भी फिर संभलने की कोशिश करता है।।

तभी बदलता है उसका बिगड़ा हुआ प्रारब्ध।।



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