पोस्टर्स
पोस्टर्स
वर्षा ऋतू खत्म हुई,
पुनः स्वच्छता अभियान शुरू हुआ है,
पालिका द्वारा रास्ते, गलियों की
सफाई जोरों से हो रही है ।
शैवाल चढ़े झोपड़ों की
दीवारें पोंछी गई हैं ...!
सुन्दर बंगलों की चारदीवारी
साफ़ की गई हैं ... !
उन्हें रंग कर उनपर गुलाब, कमल
के चित्र बनाये गए हैं ... !
दीवारों पर रंगीन घोष वाक्य लिखे गए हैं :
'स्वस्थ रहो, स्वच्छ रहो । '
'जल बचाओ, कल बचाओ।'
'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ ।'
जगह- जगह पोस्टर्स लगे हुए हैं,
सूखा और गिला कचरा अलग रखें !
पांच ━ छह वर्ष के बच्चे,
कचरे में अन्न ढूँढ रहे हैं... !
झोंपड़ी की बाहरी रंगीन दीवार देखकर,
दातुन वाले काले दाँत हँस रहे हैं !
अंदरूनी दीवारों की दरारें,
गले मिल रही हैं !
कहीं-कहीं दीवारों की परतें,
गिरने को बेताब हैं !
'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' लिखी -
दीवार के पीछे सोलह वर्ष की
लड़की प्रसव वेदना झेल रही है !
बारिश में रोती हुई छत के नीचे,
रखने के लिए बर्तन कम पड़ रहे हैं।
'जल बचाओ' लिखी हुई दिवार,
चित्रकार पर हँस रही है.....!
बस्ती के कोने में कचरे का ढेर है ।
सूखे और गीले कचरे के डिब्बे,
उलटे लेटे हुए हैं !
पालिका का सफाई कर्मचारी,
तम्बाकू मल रहा है !
'जब पढ़ेगा इंडिया, तब आगे बढ़ेगा इंडिया'
का पोस्टर उदास खड़ा है .....!
यह कैसी विसंगति लिखने में है !!
इन झोपड़ियों का अंदर का विश्व,
पोस्टर्स छिपा हुआ है,
कोई कहीं से दो पोस्टर्स ला दे मुझे
जो गरीबी और बेकारी
ढूँढ कर ……. हटा दे उन्हें !!!
