पिताजी
पिताजी
दिल में अपना दर्द छुपाते,
नहीं किसी से कभी बताते।
घर का सारा बोझ उठाकर,
खुशी से सबको हंसते हंसाते।
बच्चों को हैं सूरज से लगते,
ममता को हैं दिल में बसाते।
हाथ जीवनसाथी का थामे,
अपना प्यार सब पर लुटाते।
कंधों पर थे वो सैर कराते,
ले हाथों में हाथ थे चलते।
जिद कभी कुछ करता तो,
बेहिचक थे वो पूरा करते।
उपर जितना गरम थे दिखते,
भीतर उतना नरम थे लगते,
सूरज सा ही मुझको तपाकर,
मुझको वो 'दीपक' हैं बनाते।
