पिता
पिता
बच्चो की खुशियों की खातिर, पल पल जोड़ वो चलता है...
खड़े होकर चाट के ठेले पर खाना, उसको इसलिये अखरता है...
हाँ वो पिता है जीवन भर संघर्ष ही करता रहता है...
पेंट हो गयी बड़ी पुरानी, नई समझ वो पहनता है...
जूते घिस गये कबके, अबकी लाऊंगा कहता रहता है....
हाँ वो पिता है जीवन भर संघर्ष ही करता रहता है...
एल आई सी की किस्त रोक ली,फीस की खातिर बच्चो की...
जीवन मे विषपान को अमृतपान समझ कर पीता है..
अपनी देह से जीवनभर मेहनत का आवाहन करता है...
हाँ वो पिता है जीवनभर संघर्ष ही करता रहता है.।