स्त्री
स्त्री
स्त्री तू जग की जननी है...तू हमको रोज सिखाती है..
इस दुर्गम जीवन पथ पर चलने का...तू हमको पाठ पढ़ाती है..
माता बन करके प्यार से तू मुझको...भोजन करवाती है....
बन कर बहना मेरी सूनी कलाई...तू ही राखी से सजाती है....
तू ही बन कर के प्रेमिका .. जीवन का श्रृंगार कराती है...
पत्नी बन कर पग पग पर ..तू मेरा साथ निभाती हैं....
पर बेटी बन जब आती तू... क्यूं मैं चिंतित हो जाता हूँ....
गर्भ नष्ट करवाने की क्यूं बात हृदय में लाता हूँ...
क्या इतनी भारी है तू जीवन पर... जो तुझको पाल नहीं सकता.....
हृदय में आये इन कुविचार को क्या में त्याग नहीं सकता..
मंदिर में बैठी माता की हम रोज ही पूजा करते है..
अपने घर में बेटी के जनम पर ना जाने क्यूं डरते है...
ये अलख जगा लो जीवन में कन्या धन हमको बचाना है...
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ... ये नारा अमर बनाना है...
