पिता
पिता
पिता मान है, सम्मान है, संतान का अभिमान है।
परिवार के रंगमंच का कलाकार वह बड़ा महान है।
पिता का प्यार, पिता का त्याग ताउम्र अदृश्य ही रहता है
बचपन की शरारत, जवानी का जोश उसमें ही पलता है।
चुनौती हर कदम स्वीकार कर, हर आफत से लड़ता है
ख्वाबों और ख्वाहिशों को खरीदने में खर्च वो हो जाता है।
अपने संस्कारों से, विचारों से, स्वाभिमान से अडिग खड़ा रहता है
जीवन में पथ प्रदर्शक बन हौसलों को उड़ान देता है।
वह घड़ी सार्थक हो जाती हैं, जब पिता संतान के नाम से जाना जाता है
खुशी का इज़हार नहीं करके, पिता खुशियों को मनाकर ही दम लेता है।