पिता
पिता
इस ज़मीन पर, खुद एक आसमान है वो,
इस जहान में, खुद एक पूरा जहान है वो।
चाँद तारे भी, एक मुद्दत तक ही साथ होते हैं,
सबकी ज़िन्दगी में, एक सूरज समान है वो।
जीवन के तूफान में, नाखुदा सा डट जाता है,
रात के अँधेरे में, दीये सा बन टिमटिमाता है।
उसके हौसले से टकरा कर, हर शह बिखर जाती है,
संजीवनी बूटी में खुद, एक प्राण समान है वो।
वो शोले का जय सा है, चित-पट दोनों उसके हैं,
वो दीवार का विजय है, शिव भी डरते उससे हैं।
जेब में पाँच रुपये न हों, लाखों की खुशियाँ मोलता है,
जीवन सिनेमा में, खुद बच्चन के समान है वो।
डाँट में भी अर्थ हमारा, मार में सम्मान भविष्य का,
बातों में कड़वाहट शिक्षा है, सख्ती में भाव निर्माण का।
संसार के विपिन में, वो बिपिन सा गर्जन कर विचरता है,
पिता ब्रम्हा की सृष्टि में, खुद परब्रम्ह समान है वो।